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हिन्दी पखवाड़े के अवसर पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के हिंदी विभाग में बही कविता की बयार

 ➡ 'सृष्टि का श्रृंगार है कविता/ जीवन का आधार है कविता' झाँसी: बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हिंदी पखवाड़े के कार्यक...

 ➡'सृष्टि का श्रृंगार है कविता/ जीवन का आधार है कविता'


झाँसी: बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हिंदी पखवाड़े के कार्यक्रमों के अन्तर्गत अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग तथा साहित्यिक संस्था 'काव्याँजलि' के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) पुनीत बिसारिया ने की। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. अचला पाण्डेय एवं विशिष्ट अतिथि लोकभूषण पन्नालाल 'असर',  डॉ. श्री हरि त्रिपाठी व श्री नवीन चंद पटेल थे। कवियों एवं अतिथियों का स्वागत डॉ. द्युति मालिनी, राम कुमार, विवेक कुमार यतीन्द्र शुक्ला, दिनेश कुमार एवं मनीष कुमार मण्डल ने किया। 

कार्यक्रम के औचित्य पर प्रकाश डालते हुये प्रो. पुनीत बिसारिया ने कहा कि यह दौर हिन्दी साहित्य और हिन्दी कविता के पतन् का दौर है। कविता बाज़ार की वस्तु बनकर रह गयी है, जिसे सस्ते कवि सम्मेलन के मंचों से फूहड़ अन्दाज़ में श्रोताओं के सम्मुख परोसा जा रहा है। कार्यक्रम संयोजक कवि अभिराज पंकज ने कहा कि इस कवि सम्मेलन का परिप्रेक्ष्य हिन्दी काव्य को हिन्दी दिवस पखवाड़े के दौरान गरिमा प्रदान करने से जुड़ा हुआ है। 

कवयित्री डॉ. मोनिका पाण्डेय 'मनु' ने सरस्वती वन्दना के माध्यम से कवि सम्मेलन को गति प्रदान की। लोक भूषण पन्नालाल 'असर' ने हिन्दी भाषा और हिन्दी कविता को संरक्षित और समृद्ध करने के प्रयास किये जाने पर बल देते हुये पढ़ा-

इसे सँजोकर रखना है अनमोल खज़ाना हिन्दी का।

कानपुर से आये कवि डॉ. वैभव दुबे ने कहा-

समुन्दर हूँ, बताओ तुम भला साहिल कहाँ रख दूँ/ मेरे सीने में जो धड़के तुम्हारा दिल कहाँ रख दूँ। 

अब्दुल जब्बार 'शारिब' ने कहा-

मशवरा उसको दिया होगा यकीनन बाज़ ने/ पंख मेरे काट डाले उफ! मेरे हमराज़ ने।

 मोनिका पाण्डेय 'मनु' ने कहा-

अमर प्रेम हो आपका, ऐसा कीजे नेह/ ज्यों राधा थी कृष्ण में एक आत्म दो देह।

वरिष्ठ कवि इकबाल हसन 'सहबा' ने कहा-मेरी आँखें गौर से देखो आँखों में हैं ख्वाब बहुत/ दरिया कितने छोटे-छोटे लेकिन हैं सैलाब बहुत।

 शायर उस्मान 'अश्क' ने कहा-

मुकद्दर आज़माना चाहता हूँ/ तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ।

प्रो. पुनीत बिसारिया ने कहा-

जिस गज़ल से बात की है उस गज़ल का शुक्रिया/ जिस गज़ल की चाह की है उस गज़ल का शुक्रिया।

राजकुमार अंजुम ने माँ की अज़्मत को ऊँचाइयाँ देते हुये कहा-

माँ की ममता का सदा रुतबा रहा बुलन्द/ माँ है गालिब की गज़ल माँ मीरा का छन्द। 

कवि अभिराज पंकज ने कविता की प्रशंसा में कहा-

सृष्टि का श्रृंगार है कविता/ जीवन का आधार है कविता/ त्याग-तपस्या दर्शन-तीरथ/ इश्क-मुहब्बत-प्यार है कविता। कार्यक्रम के अन्त में आभार ज्ञापन डॉ. अचला पाण्डेय ने किया। कवि समागम का वीडियो लिंक शीघ्र साझा करूंगा।

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