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कृषि को जीडीपी में प्रमुख स्थान देने के साथ समाप्त हुआ अंतर्राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के डॉ ऋषि सक्सेना को मिला "नेसा 2022 विशिष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार" 365 छात्रों ने किया रजिस्ट्रेशन 260 ने प्...

  • बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के डॉ ऋषि सक्सेना को मिला "नेसा 2022 विशिष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार"
  • 365 छात्रों ने किया रजिस्ट्रेशन 260 ने प्रस्तुत किया पोस्टर

झांसी। आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर कृषि का महत्व और अधिक बढ़ने की संभावना है। बढ़ती हुई आबादी को खाद्यान्न प्रदान करने के लिए पर्यावरण पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों के लिए यह चुनौती है कि प्राकृतिक पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए किस प्रकार कृषि को एक सफल उपक्रम बनाया जाए। उक्त विचार इंदौर के डॉ बी आर अंबेडकर यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल साइंसेज के कुलपति डॉ डीके शर्मा ने भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के ऑडीटोरियम में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन के समापन समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि निश्चित ही इस सम्मेलन से बुंदेलखंड के साथ ही क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय परिदृश्य पर कृषि विकास को नई भूमिका मिलेगी। इस अवसर पर राष्ट्रीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी नई दिल्ली द्वारा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ ऋषि सक्सेना को "नेसा 2022 विशिष्ट वैज्ञानिक अवार्ड" प्रदान किया गया। नेसा के वाइस प्रेसिडेंट प्रोफेसर ऐके सिंह ने कहा कि आज भारतीय कृषि जिस मोड़ पर है वहाँ सभी संस्थाओं को मिलकर संयुक्त रूप से कार्य करने की आवश्यकता है। जिससे कम समय में बेहतर परिणाम प्राप्त हो सके। इससे ऊर्जा, समय और संसाधन तीनों को बचाया जा सकता है। नेसा आगे भी इस प्रकार के आयोजन के लिए सर्वप्रथम उपस्थित रहेगा।  यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां पर नीति निर्णायक, कृषि वैज्ञानिक, कृषि शिक्षक एवं कृषि के छात्र आपस में परस्पर संवाद के लिए उपलब्ध है। इसका आने वाले समय में भारतीय कृषि को लाभ मिलेगा।


कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अरविंद कुमार ने कहा कि भारत सरकार शोध को लेकर विशेष रूप से प्रयत्नशील है। इस अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में कई वैज्ञानिकों और छात्रों द्वारा अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए गए हैं जिनसे निश्चित ही कृषि क्षेत्र को लाभ मिलेगा।


बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मुकेश पांडे ने कहा कि भारत में कृषि उत्पादन के साथ ही उसके संरक्षण की गंभीर समस्या है। अक्सर देखने में आता है कि आलू,प्याज टमाटर आदि की अधिक पैदावार होने के कारण किसानों को उनका सही मूल्य नहीं मिल पाता और उनके संरक्षण की भी कोई व्यवस्था नहीं हो पाती।ऐसे में किसान कृषि से हताश हो जाता है। हमें इस और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। कृषि में प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर समाधान किया जा सकता है।


भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ अरमेश चंद्रा ने कहा यह अंतर्राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन संयुक्त रुप से पहला प्रयास था। निश्चित ही कुछ महत्वपूर्ण सुझाव सामने आए हैं। आगे भविष्य में भी ऐसे सम्मेलन कराने के लिए प्रयास किया जाएगा।


आयोजन सचिव डॉ शकील अहमद खान इस अवसर प्रदान किए गए अवार्ड की जानकारी दी एवं सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। आयोजन सह सचिव डॉ आरएस तोमर तीन दिन चले अंतरराष्ट्रीय  कृषि सम्मेलन की समीक्षा प्रस्तुत की।  


नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) द्वारा प्रायोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी नई दिल्ली, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, केंद्रीय आयुर्वेद शोध संस्थान, इंडियन सोसायटी ऑफ एग्रोफोरेस्ट्री, उत्तर प्रदेश कृषि शोध समिति लखनऊ, रेंज मैनेजमेंट सोसायटी ऑफ इंडिया झांसी, राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना नई दिल्ली, द सोसाइटी ऑफ साइंस ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबल एनवायरमेंट दिल्ली, सोसायटी फॉर प्लांट एंड एग्रीकल्चर साइंसेज पुणे और जन परिवार संस्थान ग्वालियर ने संयुक्त रूप से किया।


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