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बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हुआ काव्य गोष्ठी का आयोजन

 ●कवयित्री माया गोविंद को दी गई काव्यमय श्रद्धांजलि ********************************** बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी के हिंदी विभाग में बु...

 ●कवयित्री माया गोविंद को दी गई काव्यमय श्रद्धांजलि
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बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी के हिंदी विभाग में बुंदेलखण्ड साहित्य उन्नयन समिति के तत्वावधान में देश की वरिष्ठ कवयित्री फिल्म गीतकार , अदाकारा एवं नृत्यांगना श्रीमती माया गोविंद की पुण्य स्मृति में कवि गोष्ठी का आयोजन हिन्दी विभागाध्यक्ष और समिति के अध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया की अध्यक्षता में किया गया, जिसमें देश के अनेक प्रतिष्ठित कवियों एवं कवयित्रियों ने सहभागिता की। नवरात्रि के पावन अवसर पर आयोजित यह संगोष्ठी जहाँ एक ओर नारी शक्ति को समर्पित रही , वहीं काव्य के मापदण्डों को स्थापित करने में भी सफल सिध्द हुई। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में दतिया से पधारे डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' और लोक भूषण पन्नालाल 'असर ' एवं  मुजफ्फरनगर से पधारी श्रीमती प्रतिभा त्रिपाठी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। संगोष्ठी का संचालन  डा.रामशंकर भारती ने किया। संगोष्ठी का शुभारंभ कवयित्री संगीता निगम की वाणी वंदना से हुआ। उन्होंने माँ सरस्वती को अपनी भावाँजलि अर्पित की तत्पश्चात उन्होंने गजल में कहा –

पुराने सफर की कहानी लिखूँगी ।

वतन की में बातें पुरानी लिखूँगी।।

देश की चर्चित कवयित्री मोनिका पाण्डेय मनु ने सोशल मीडिया पर तंज करते हुए अपनी गजल पढ़ी-

मेरे कपड़ों से जब तुम मैच कर डीपी लगाते हो ।

बताऊँ क्या तुम्हें कितना मुझे तुम याद आते हो।।

देश भर में अपनी साहित्यिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध इस गोष्ठी की संयोजिका लोकप्रिय कवयित्री प्रतिभा त्रिपाठी ने अपनी पीड़ा इस तरह व्यक्ति की–

मैं उथला - उथला नीर नहीं ,

 कंकड़ न यहाँ उछालो तुम।

  जब थाह नहीं गहराई की,

  मत भरम नेह का पालो तुम।।

किसानों - मजदूरों के शोषण पर पीड़ा व्यक्त करते हुए देश के वरिष्ठ साहित्यकार निहाल चंद्र शिवहरे ने " संवाद होना चाहिए"  कविता में कहा –

खेतों में मेहनतकश किसान का पसीना/मजदूरों का गंगाजल का पसीना मिलकर/स्वेद से संकल्प लिखने का भाव जगाए/मजदूरों का शोषण कर पनपने वाले तब भ्रष्ट तंत्र से संवाद होना चाहिए ..।

   वरिष्ठ कवि साकेतसुमन चतुर्वेदी ने प्यार को परिभाषित करते हुए सुंदर दोहे पढे़। उनका यह दोहा बहुत सराहा गया 

प्यार , प्यार है चाहता , और न दूजी बात ।

सच्चे मन से कीजिए, बस इसकी शुरुआत ।।

बुंदेली कवि प्रताप नारायण दुबे ने ग्रामीण जीवन का चित्र खींचते हुए बुंदेली प्रकृति का चित्र उकेरते हुए कहा-    

महुआ टप- टप टपकें,

छैंना रस से दमकें।

लाल- लाल जे गाल करौआ,

चौखों महुआ जमकें।

लोक जीवन की चितेरी कवयित्री संध्या निगम अपने गीतों और गजलों के लिए जानी - पहचानी जाती हैं। उन्होंने गाँव की माटी को समर्पित माटी का गाँव गीत पढ़ते हुए कहा-

माटी के गाँव ने मुझको पुकारा ममता की आंख से किया है इशारा।  

'लाल किताब में लिखा था' जैसी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाओं के सशक्त हस्ताक्षर देवेंद्र भारद्वाज ने अपनी यह व्यंग्य रचना सुनायी -

अपने मंत्री इतने जनतंत्री थे कि

 जब भी  फोटो लिए जाते/

 अपना एक पैर आगे कर देते

 क्योंकि चेहरे के मुकाबले पैरों की निरंतर उपेक्षा हो रही है/उनकी अभिलाषा है कि प्रजा मुझे चेहरे से नही/ मुझे मेरे चरणों से जाने।गोष्ठी के मुख्य अतिथि अरविंद श्रीवास्तव असीम ने अपना यह बहुत खूबसूरत गीत पढ़ा -

देखकर नेह संवारा तुमने 

मुझको मिला सहारा, तुम जीते मैं हारा।

डॉ मुहम्मद नईम ने सामाजिक समरसता व सद्भाव का संदेश देते हुए अपना बेहतरीन मुक्तक कुछ यूँ पढ़ा –

काश हो जाएं दुनिया के ऐसे - ऐसे ढंग।

रोज सुबहो ईद मिले साथ हों होली के रंग ।

विशिष्ट अतिथि पन्नालाल असर ने अपनी गज़लों और गीतों से गोष्ठी को ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनकी यह गजल भी बहुत पसंद की गई-

यूँ मिरा गीत तिरे होठों से अक्सर निकला।

जैसे भँवरा कोई फूलों से लिपटकर निकला।

संगोष्ठी का संचालन कर रहे डॉ रामशंकर भारती ने मुक्तक और नवगीत पढ़े। उनका यह मुक्तक बहुत सराहा गया -

तुम मिले प्रीत का अवतरण हो गया। 

वासना से विमुख आचरण हो गया।

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डॉ पुनीत बिसारिया ने देश की प्रतिष्ठित कवयित्री माया गोविंद की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि श्रीमती माया गोविंद जी हिन्दी काव्य की अत्यंत प्रांजल और परिष्कृत छंद यात्रा हमारे मध्य थाती के रूप में छोड़ गयी हैं। हमें उनकी छांदिक यात्रा को अविराम बनाए रखने के लिए अपनी कविताओं में छंदों की प्रतिष्ठा करनी होगी, तभी हम गीत की रससंस्कृति से समाज को लोकमंगलकारी साहित्य उपलब्ध करा सकेंगे। इस अवसर पर उन्होंने अपने कुछ दोहे और गजलें पढ़ीं। उनकी यह ग़ज़ल बहुत ही सराही गई - 

जिस ग़ज़ल से बात की है उस ग़ज़ल का शुक्रिया।

जिस गज़ल की चाह की है उस ग़ज़ल का शुक्रिया।

जिस गज़ल में नाम आया उस प्रिये का बार बार

जिस गज़ल ने हां भरी है उस ग़ज़ल का शुक्रिया।।

इस अवसर पर मातृ शक्ति स्वरूपा समस्त कवयित्रियों को सम्मानित किया गया। संगोष्ठी के अंत में कवयित्री माया गोविंद के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर दिवंगत आत्मा की शांति हेतु परमात्मा से प्रार्थना की गयी, तत्पश्चात समिति के उपाध्यक्ष निहाल चन्द्र शिवहरे ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी का संचालन समिति के संयुक्त सचिव डॉ.रामशंकर भारती ने किया।


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